सिलियक डिजीज यानी गेहूं से एलर्जी - लक्षण, बचाव और उपचार

Diseases of the Small Intestine, celiac disease diagnosis, celiac disease biopsy

विश्व की आबादी के लगभग 0.7% इस रोग से प्रभावित है, दक्षिण भारत के लोग अपने खानपान में गेहूं का प्रयोग कम करते हैं| इसलिए दक्षिण भारत में इस बीमारी का प्रभाव बहुत कम है लेकिन उत्तर भारत के राज्य में सीलिएक रोग एक स्वास्थ्य चुनौती के तौर पर उभर रहा है|

अमेरिका यूरोप में इसकी संख्या काफी ज्यादा है| इससे हर उम्र के लोग प्रभावित हैं इसीलिए इस के प्रभाव को पहचानने में काफी समय लग सकता है| उम्मीद है कि ज्यादा से ज्यादा लोग सीलिएक रोग को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ेगी|

यह बीमारी काफी पुरानी है लेकिन भारत में इसके मरीज पिछले 15 सालों से सामने आ रहे हैं| जिन राज्यों में गेहूं उगता और खाया जाता है वहां 120 लोगों में से एक व्यक्ति इससे प्रभावित हो सकता है| ज्यादातर लोगों में यह पता ही नहीं होता कि उनको यह बीमारी है| जब तक कोई गंभीर समस्या नहीं आती या डायग्नोसिस (celiac disease diagnosis) नहीं करवाया जाता है| इस बीमारी का निदान करवाने के बाद आए हुए सुधार से ही इसकी पुष्टि की जाती है|

क्या सिलियक रोग गेहूं की एलर्जी की है

सीलिएक रोग (celiac disease) का व्यवहार एक एलर्जी की तरह होता है सीलिएक रोग और गेहूं एलर्जी यह दोनों हैं अलग-अलग बीमारी है| गेहूं की एलर्जी को सालों में ठीक हो सकती है जबकि सीलिएक रोग जीवन भर चलता है|

गेहूं एलर्जी में सामान्य तौर पर उल्टी, दस्त, शरीर में दाने, सांस लेने में दिक्कत आधी होती है यह लक्षण गेहूं खाने की कुछ हफ्तों कुछ दिनों या कुछ सालों बाद सामने आते हैं|

सिलियक रोग कब और कैसे होता है

ग्लूटेन यानी कि गेहूं बच्चे के खाने में शुरू करने के बाद यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है| इसका निदान ज्यादातर दो 2 साल की उम्र से बड़े बच्चों में हो रहा है| पर 80 साल की उम्र में भी यह शुरू हो सकती है|

अमेरिका में सीलिएक रोग के निदान की औसत औसत उम्र 40 से 50 वर्ष है जबकि गेहूं वहां बचपन से ही खाया जाता है|

सिलियक रोग के सामान्य लक्षण क्या है

सीलिएक रोग (Celiac Disease) एक आंतों की बीमारी है इससे शरीर के दूसरे अंग को भी प्रभावित कर सकती है| इसके लक्षण सिर्फ आंतों से ही नहीं बल्कि दूसरे अंगों से भी संबंधित हो सकते हैं| आंतों संबंधित कुछ सामान्य लक्षण है
  • दस्त पेट में दर्द
  • उल्टी
  • शरीर का वजन कम होना
  • पेट का फूलना
  • शरीर का विकास ना होना इत्यादि.
  • गठिया
  • ऑस्टियोपोरोसिस या ऑस्टियोपेनिया (हड्डी का नुकसान)
  • यकृत और पित्त संबंधी विकार विकार (ट्रांसमिनेटाइटिस, फैटी यकृत, प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलांगिटिस आदि)
  • अवसाद या चिंता
  • परिधीय न्यूरोपैथी (हाथों और पैरों में झुकाव, धुंध या दर्द)
  • दौरे या migraines
  • मासिक धर्म काल याद किया
  • बांझपन या आवर्ती गर्भपात
  • मुंह के अंदर कैंसर घाव
  • डार्माटाइटिस हेर्पेटिफोर्मिस (खुजली त्वचा की धड़कन)

जब स्वास्थ्य संबंधी कोई और दशा जिसमें साधारण दवाई से सुधारना हो रहा हो या जिनका कोई और कारण में वजह सामने ना आ रही हो तो सिलियक रोग हो सकता है| अगर Celiac Disease परिवार में किसी और सदस्य को है तो इसकी संभावना थोड़ी बढ़ जाती है| अगर किसी व्यक्ति को कोई ऑटोनॉमस बीमारी है जैसे टाइप टू डायबिटीज, थायराइड की बीमारी में आया स्वास्थ्य संबंधी बीमारी का इलाज साधारण दवाइयों से ना हो रहा हो तो इसलिए रोग  की जांच करवानी चाहिए|

एंडोस्कोपी आंतों की आंतरिक जांच ही एकमात्र भरोसेमंद जांच है| इससे पहले जांच रक्त जांच (ttg blood test) की भी जरूरत होती है| निदान के बाद ग्लूटेन मुक्त आहार अपनाने के बाद आये सुधार से इसकी की पुष्टि की जाती है|

सीलिएक रोग का इलाज क्या है?

जिंदगी भर ग्लूटेन से परहेज ही एकमात्र इसका इलाज है| ग्लूटेन मुक्त आहार से मैं के पश्चात कुछ सप्ताह में सुधार आना शुरू हो जाता है| इसके इसके इलाज के लिए कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है| याद रखें ग्लूटेन दोबारा शुरू करने पर कई दिक्कत रोग कुछ हफ्तों कुछ महीनों या कुछ सालों के बाद उभर कर सामने आ सकते हैं| भारतीय खाने में कई ग्लूटेन मुक्त व्यंजन है, जो दुनिया भर में ग्लूटेन मुक्त आहार के तोर पर शौक से खाए जाते हैं| शुरुआत में चुनौतीपूर्ण जरूर है लेकिन सही जानकारी और संसाधनों से इस को काबू में रखा जा सकता है|

ग्लूटेन क्या है?

ग्लूटेन एक प्रोटीन है यह दुनिया भर के उन प्रोटीन में शामिल है| जिसको हमारा शरीर पचा नहीं पाता है जब हमारे शरीर में ग्लूटेन नाम का प्रोटीन जाने पर हमारा शरीर उसके विपरीत प्रतिक्रिया करता है| जिसके चलते शरीर में बीमारियां शुरू हो जाती है| लुटे नामक प्रोटीन ज्यादातर गेहूं में पाया जाता है जिसको मुख्य आहार के रूप में लेते हैं इसके अलावा यह जौ में भी पाया जाता है|

ग्लूटेन का सेवन करने से छोटी आंत को प्रभावित होती है जिसके चलते शरीर को पौष्टिक तत्व नहीं मिल पाते हैं|

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