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ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019

हाल ही में ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 जारी किया गया है, यह सूचकांक आयरलैंड में स्थित कॉन्करेंट वर्ल्ड वाइड और जर्मनी में स्थित वर्ल्ड हंगर आई लाइफ नामक संगठन से संयुक्त रूप से तैयार किया गया है। इससे पहले तक के सूचकांक के प्रकाशन में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की भी सहभागिता थी। इस साल के सूचकांक में विश्व स्तर पर भूख और अल्प पोषण की स्थिति को 20.0 सकौर के साथ गंभीर और अति गंभीर की श्रेणी में रखा गया है। 2019 के सूचकांक में विश्व के 117 देशों में भूख की स्थिति का आंकलन किया गया है। इन देशों में भारत को 102 वी रैंक मिली है। इस सूचकांक में बैल रूम स्थित सहित 17 देशों को शीर्ष रैंक प्राप्त हुई है, सेंट्रल अफ्रीका रिपब्लिक इस सूचकांक में सबसे अंतिम पायदान में रहा है।  रैंकिंग के मापदंड यदि रैंकिंग के मापदंड की बात करें तो वर्ल्ड हंगर लाइफ और इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च ने चार संकेतों के आधार पर यह सूचकांक तैयार किया गया है। 

Recurring Deposit ka Faida शेविंग करने का सबसे बढ़िया तरीका

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अकाउंट के बारे में आपने जरूर सुना होगा, यह सेविंग करने का सबसे बढ़िया और आसान तरीका होता है। आर डी का मतलब होता है आवर्ती जमा, एक ऐसा अकाउंट जिसमें निश्चित अवधि के लिए हर महीने एक तय राशि जमा करनी होती है। जब भी कोई व्यक्ति किसी फाइनैंशल इंस्टीट्यूट, पोस्ट ऑफिस या बैंक में एक निश्चित अवधि के लिए खाता खोलो आता है। और हर महीने एक तय राशि जमा करता है तो उसे आरडी यानी रिकरिंग डिपॉजिट अकाउंट कहा जाता है। आरडी में सेविंग अकाउंट के मुकाबले ज्यादा ब्याज दर होती है। बचत खाते में जहां पर 4% से 6% तक का ब्याज तक ब्याज दर होती है, वही आरडी अकाउंट में 6% से 9% तक की ब्याज दर होती है। जो लोग नौकरी करते हैं उनके लिए आरडी अकाउंट सेविंग सेविंग करने का एक बहुत ही अच्छा और आसान तरीका है। क्योंकि एक बार आरडी अकाउंट खुलवाने के बाद इसमें कुछ और करने की झंझट नहीं रहती है। हर महीने सेविंग अकाउंट से तय है राशि कट होकर आरडी अकाउंट में जमा होती रहती है। आरडी अकाउंट 6 महीने से लेकर 10 साल के लिए खुलवाया जा सकता है। इसमें कम से कम ₹100 जमा कर सकते हैं आरडी अकाउंट से आप कुछ बड़े खर्चे आसानी से पूरे

Fixed Deposit पैसे डबल करने का सबसे आसान तरीका है

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FD के बारे में कई बार सुना और पढ़ा होगा, बिना कुछ करे पैसे डबल करने का सबसे आसान तरीका है। FD का पूरा नाम है फिक्स डिपॉजिट, जब व्यक्ति किसी बैंक या फाइनेंस कंपनी में अपनी राशि निश्चित समय के लिए जमा करता है, जिस पर बेहतर ब्याज दर मिलती है उसे FD कहा जाता है। FD के तहत जो राशि जमा की जाती है बैंक आमतौर पर बचत खाता से ज्यादा ब्याज देते हैं , बचत खाते में 3 से लेकर 6% तक की ब्याज दर होती है, जबकि FD अकाउंट में 7% से लेकर 9% तक ब्याज दिया जाता है। लगभग सभी बैंक FD की सुविधा प्रदान करते हैं. भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक या पोस्ट ऑफिस जैसे लगभग सभी फाइनेंस संस्थाएं FD खाता खुलवा सकते हैं। Fixed Deposit कैसे ओपन करते हैं FD अकाउंट ऑनलाइन या ऑफलाइन खुलवा सकते हैं, ऑफलाइन खुलवाने के लिए किसी भी बैंक शाखा में जाकर FD का फॉर्म भर कर जमा करना होता है, उसके बाद आपका FD अकाउंट ओपन कर दिया जाता है। ऑनलाइन नेट बैंकिंग का इस्तेमाल करके FD अकाउंट ऑनलाइन भी खुलवाया जा सकता है, Fixed Deposit (FD) कराने के फायदे FD करवाने का सबसे बड़ा फायदा है कि आप का पैसा 100 प्रतिशत महफूस है

कैसे बचे धुंध और वायु प्रदूषण से

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आप जानते ही होंगे दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में तेरा शहर अकेले भारत के ही हैं गौरतलब है कि वायु प्रदूषण फेफड़े हृदय तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क पाचन तंत्र और त्वचा पर तो असर डालता ही है स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का भी कारण बनता है हवा में प्रदूषण का एक कारण कुदरती जरिया है लेकिन सबसे बड़ी वजह आबादी के साथ वाहन और उद्योगों के अलावा पर्यावरण में बदलाव होना भी है प्रदूषित हवा का एहसास तब होता है जब जब संभोग हो या अधिक धूलिया दुआ हो नियमित एक्सरसाइज और योग से प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को दूर किया जा सकता है। हम आज बीमार पर्यावरण में जी रहे हैं प्राकृतिक के अंधाधुंध दोहन के अलावा कई कारणों से वातावरण प्रदूषित हो जाता जा रहा है प्रदूषण एक प्रकार का अत्यंत धीमा जहर है जो हवा पानी दूर से मिलकर हम सब को बीमार बनाता ही है साथ ही जीवन और जंतुओं को भी नष्ट कर देता है गौरतलब है कि कभी-कभी वातावरण में प्रदूषण बढ़ जाता है और हानिकारक तत्व का प्रवेश हो जाता है चर्म रोग नेत्र रोग स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां होने लगती है और कई ऐसे बीमारियां हैं जो कि इसी प्रदूषण की देन है रक्तचाप शुग

बाल्यकाल स्थूलता यानी बचपन का मोटापा एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती

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बचपन में मोटापा बच्चों के लिए एक गंभीर खतरा है, बाल्यकाल स्थूलता यानी बचपन का मोटापा एक स्थिति है जिसमें शरीर में उपस्थित अतिरिक्त वसा बच्चे के स्वास्थ्य को खतरनाक नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है| बदलते जीवन शैली और खानपान की वजह से बच्चे बचपन में ही मोटापे के शिकार होते जा रहे हैं| बच्चों का लगातार बढ़ता वजन माता-पिता के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है| WHO विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज हमारे देश में एक-चौथाई बच्चों और किशोर मोटापे का शिकार है। बचपन का मोटापा एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती भारत में ही लगभग हर हर घर में कोई ना कोई मोटापे की बीमारी से ग्रस्त है| मोटापा वह स्थिति है जब शरीर पर अत्याधिक शरीर वसा एकत्रित हो जाती है| जो धीरे-धीरे हमारे स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है| मोटापा बहुत से लोगों के साथ रोगों के साथ जुड़ा है| हृदय रोग मधुमेह निंद्रा कालीन स्वास्थ्य समस्या आदि कम उम्र में बढ़ता वजन बहुत सी गंभीर बीमारियों को न्योता देता है| इससे बच्चे के विकास, दिल, किडनी, घुटने और अन्य कई बहुत महत्वपूर्ण अंगों पर प्रभाव पर बुरा असर पड़ता है| मो

बदलते मौसम के दौरान बच्चों में होने वाली बीमारियां

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पेट दर्द, सर्दी जुखाम और त्वचा संबंधी सकर संक्रमण आदि बच्चों में होने वाले आम बीमारियां हैं जिनमें मां-बाप छोटी-छोटी तकलीफ से समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं| लेकिन यही लापरवाही ठीक नहीं है आगे चलकर यही छोटी-छोटी बीमारियां उनके लिए परेशानियां बन जाती है| मौसम बदलने पर बच्चे में सही में सर्दी जुकाम होना आम बात है| बड़े लोगों की तुलना में 2 से 5 साल तक के बच्चों को जुखाम अधिक होता है| नाक बहना, ठीकना, थकान महसूस होना, गले में खराश और हल्का बुखार आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। 6 महीने से कम उम्र के शिशुओं को यदि 2 सप्ताह से अधिक समय तक सर्दी जुखाम होता है तो घरेलू उपचार की बजाय तुरंत शिशु रोग विशेषज्ञ को दिखाएं| ध्यान रहे नाक बंद होने पर बच्चों को सांस लेने में परेशानी होती है इसलिए सोते समय सर के नीचे नरम तकिया रखें। बच्चे अक्सर गंदे हाथ या जमीन पर गिरी हुई चीजों को उठाकर मुंह में डाल लेते हैं. इससे उन्हें पेट संबंधी समस्या हो जाती है. तेज बुखार, पेट दर्द, उल्टी हो रही हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं| इसके साथ साथ ही शिशुओं में कब्ज की समस्या होना एक आम बीमारी है| उनके शरीर में

गर्भवती महिलाओं की देखभाल एवं सावधानियां

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एक महिला के लिए मां बनने का एहसास जीवन के सबसे सुखद एहसास में एक होता है। गर्भावस्था के 9 महीने में एक महिला को कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक बदलाव के साथ तकलीफों का भी सामना करना पड़ता है। इसी नाजुक स्थिति में महिलाओं को अपना खास ख्याल रखने की जरूरत होती है इसलिए उन्हें पहली तिमाही में हर महीने में जांच कराना चाहिए। गर्भावस्था के शुरुआती 3 महीने अहम सुबह के वक्त बुखार जी मचल आना कमजोरी लगना कम भूख लगना थकावट रहना उल्टी जैसी शिकायत कई इसी दौरान होती है लेकिन कई महिलाएं शुरूआती 3 महीने को काफी हल्के में लेती है| जबकि इसी दौरान गर्भ में शिशु का विकास होना जरूरी होता है जाहिर है इसी दौरान शरीर के बदलाव होने लगते हैं| खाने के स्वाद और त्वचा में भी बदलाव आने लगते हैं मानसिक रूप से चिड़चिड़ापन स्वभाविक है| लगातार भावनाओं का उतार-चढ़ाव बना रहता है गर्भावस्था में शारीरिक परिवर्तन चौथे महीने में पेट में संकुचन और दर्द दूसरी तिमाही से त्वचा की रंगत में परिवर्तन त्वचा में कालापन आना शुरू हो जाता है| मां के फेफड़े और अधिक हवा लेना शुरू कर देते हैं ताकि पेट म