भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय, राजनीतिक सफर, विचार और चिंतन

बाबा साहब का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था उस दिन को ही महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
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युगो युगो में कोई ऐसा शख्सियत पैदा होता है जिनके विचारों का देश और समाज पर गहरा असर पड़ता है.  उनके विचार से समाज और युग में क्रांतिकारी बदलाव हो जाते हैं. ऐसे ही युग पुरुष भारत रतन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर 1891 मध्य प्रदेश के महू में पैदा हुए, बाबा साहेब का बचपन शोषण पीड़ा और भेदभाव में गुजरा लेकिन उनके विचारों में अधिक असाधारण व्यक्तित्व के धनी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने ना केवल राष्ट्र निर्माण में महत्व अतुल्य योगदान दिया. बल्कि अपनी प्रखर बुद्धि क्रांतिकारी विचारों से समाज की हर क्षेत्र में बदलाव के वाहक बने. उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सोचने, धार्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और संवैधानिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसके लिए पूरा देश उनका रीणी है. उन्होंने आजाद भारत का संविधान बनाने में अगवाई की और भारत के पहले कानून मंत्री बने वह दलितों के लिए लड़े, महिलाओं के लिए लड़े और सामाजिक आर्थिक बदलाव के बड़े वाहक बने|


20 वीं सदी में दुनिया के महानतम लोगों की सूची में आदर के साथ उनका नाम लिया जाता है. 6 दिसंबर उनका महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने करुणा और बौद्धिकता के आदर्शों को धरातल पर उतारने के लिए लंबा और अहिंसात्मक संघर्ष किया. बाबा साहब का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था उस दिन को ही महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है.

इस मौके पर संसद समेत देश के कई जगहों पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम हुए, बाबा साहब ने समाज के वंचित वर्गों में जागरूकता लाने, संगठित करने, और आगे बढ़ने की प्रेरणा देने में उनका पूरा जीवन समर्पित किया. बाबा साहेब का शिक्षा पर बहुत जोर था उन्होंने कha शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो का मंत्र दिया. दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के संविधान निर्माता के रूप में बाबा साहेब को याद किया जाता है.

समानता, संवैधानिकता और भाईचारा स्थापित करने के लिए अंबेडकर के लंबे संघर्ष ने उन्हें राष्ट्रीय प्रतिरूप रूप में स्थापित किया. उन्होंने पारंपरिक रूप से वंचित समुदायों और समूह में उम्मीद, आत्मविश्वास और आत्म सम्मान की भावना पैदा की भारत रतन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के 63 में महापरिनिर्वाण दिवस पर देश भर में कई कार्यक्रम हुए|



सतपाल बाबा साहेब का उपनाम था अंबेडकर प्रतीक गांव का नाम था. सामाजिक आर्थिक भेदभाव समाज के उच्च वर्गों के द्वारा व्यवहार से बचने के लिए भीमराव ने अपना नाम सतपाल से बदलकर अंबेडकर कर. भीमराव अंबेडकर जाने-माने राजनीतिज्ञ और न्याय विद थे छुआछूत और जाति आधारित परिवर्धन और सामाजिक बुराइयों समाप्त करने के लिए उनकी ओर से किए गए प्रयास उल्लेखनीय है.

बुद्ध जयंती के अवसर पर 24 मई 1956 को उन्होंने मुंबई में एक बात की घोषणा की कि वह बौद्ध धर्म को अपनाएंगे. 14 अक्टूबर 1956 उन्होंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को स्वीकार किया अंबेडकर का धर्म परिवर्तन जातिभेद शोषणओं के प्रति एक प्रतियोगिताप्रतियां कम विरोध tha.

डॉ. भीमराव अंबेडकर :- यह परिवर्तन में किसी लाभ के लिए नहीं कर रहा हूं मैं अगर अछूत भी बना रहा हूं तो भी ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है जो मैं प्राप्त नहीं कर सकता मैं केवल अपने आध्यात्मिक नजरिए के कारण धर्म परिवर्तन कर रहा हूं

आधुनिक भारत को जिन लोगों ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया उनका नाम उनमें एक ही नाम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर राम जी का है. बाबा साहब के नाम से मशहूर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर देश में दबे कुचले वर्गों को बराबरी दिला ने देश में क्षमता मूल्य आत्मक समाज की स्थापना और कानूनी तौर पर लोगों को सक्षम बनाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे. अंबेडकर ने दलितों को एहसास दिलाया की जमीन कि जिस जमीन पर वह रहते हैं उस पर उनका भी हक है, जिस आसमान के नीचे वह सोते हैं उसमें उनकी भी हिस्सेदारी है यही अंबेडकर का सबसे बड़ा कारनामा है.

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय

डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश में जन्मे थे. वह इंदौर जिले के एक छोटे से कस्बे महू में रहने वाले रामजी मलोजी सकपाल और बीमा भाई की 14 और सबसे छोटी संतान थे. बचपन बहुत परेशानियों में गुजरा सिर पर गरीबी और एक अछूत जाति महार में जन्मे का बॉझ सर पर उठाए अंबेडकर स्कूल पहुंचे अपने भाई भाइयों और बहनों में केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और उन्होंने बड़े स्कूल में दाखिला पाया अंबेडकर मुंबई गवर्नमेंट हाई स्कूल के पहले दलित छात्र थे.

बाबा साहेब ने 1967 में मैट्रिक परीक्षा पास की इसके बाद वह मुंबई विश्वविद्यालय पहुंचे और भारत के किसी भी कॉलेज में दाखिला पाने वाले वह पहले व्यक्ति थे. जिस पर अछूत होने का tमका लगा हुआ था. इस दौरान उनकी जिंदगी में दुत्कार जाति अपमान और जिंदा रहने के सिवा कुछ नहीं था. पढ़ाई में तेज और तेज के बावजूद उन्हें स्कूल में कभी दूसरे बच्चों के बराबर नहीं समझा गया. दूसरे अछूत बच्चों की तरह कक्षा के अलग बैठाया जाता स्कूल में पानी पीना तो दूर पानी के बर्तन को छूना भी मनाई था. ना कोई अध्यापक उन पर ध्यान देता और ना ही कोई उनकी मदद करता.


  • उनकी प्रतिभा को देखकर बड़ोदरा के महाराजा श्याम जी राव गायक गायकवाड ने अमेरिका में पढ़ने के लिए 2500 रुपए महीना का वजीफा
  • 1912 में राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की
  • 1996 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में पीएचडी किया
  • 1923 में लंदन से डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्री से नवाजे गए


डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का राजनीतिक सफर

1926 में मुंबई विधान परिषद के लिए मनोनीत किया गया. 1926 में सविधान परिषद के समय बनने के बाद मुंबई विधान परिषद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के लिए संसदीय राजनीति की पाठशाला बन गई. इसके बाद वह समाज में बराबri लाने के संघर्ष में शामिल हो गए. 1927 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत के खिलाफ व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया.

उन्होंने पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिए खुला ने अछूतों को हिंदुओं मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किए. इस दौरान उन्होंने मुख्यधारा राजनीतिक दलों के बीच जाति व्यवस्था उन्मूलन को लेकर उदाहरण है उदासीनता की कड़ी आलोचना की. 8 अगस्त 1930 को एक शोषित सम्मेलन में हिस्सा लिया और कहा अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक सोच दुनिया के सामने रखी

डॉ. भीमराव अंबेडकर :- हमें अपना रास्ता खुद बनाना होगा राजनीतिक शक्ति वंचितों की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती उनका उद्धार सम्मान सेअपना उचित स्थान पाने में निहित है

24 सितंबर 1932 को उन्होंने गांधी के साथ पूना पैक्ट समझौता किया इसके तहत विधान मंडलों में दलितों के लिए सुरक्षित स्थान बढ़ा दिए गए

देश आजाद हुआ तो अंबेडकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में देश के पहले कानून मंत्री बने. 29 अगस्त 1947 को उन्होंने स्वतंत्र भारत का नया संविधान लिखने के लिए बनी संविधान मसौदा समिति को का अध्यक्ष बनाया गया. 1956 में हिंदू धर्म त्याग का बौद्ध धर्म अपना लिया. 1951 में उन्होंने संसद में हिंदू कोर्ट बिल पेश किया. इस बिल का विरोध होने पर उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. 6 दिसंबर 1956 को उन्होंने इस दुनिया में आखिरी सांस ली.

अंबेडकर ज्ञान का सागर थे राजनीतिक, अर्थशास्त्र, मानव विज्ञान, धर्म, समाजशास्त्र और कानून पर कई किताबें लिखी. उन्होंने दलित समाज से कहा शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो. 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया. 2012 में हुए एक टीवी सर्वे में उन्हें महानतम भारतीय चुना गया.

डॉ. भीमराव अंबेडकर :- मूल रूप से पशु और मनुष्य में यही विशेष अंतर है कि पशु अपने विकास की बात नहीं सोच सकता मनुष्य सोच सकता है और अपना विकास कर सकता है

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डॉ भीमराव अंबेडकर के विचार और चिंतन

डॉ भीमराव अंबेडकर ने सामाजिक एकता समरसता धर्मनिरपेक्षता के बड़े पैरोकार माने जाते हैं. जातीय व्यवस्था की बुराइयों जेल कर बड़े हुए. अंबेडकर आजीवन लोगों को इन बुराइयों से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे. डॉ भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म में ब्राह्मणवाद का विरोध किया, दूसरे धर्म की कट्टरता को देश के खतरे देश के लिए खतरा बताया. वह देश में दलित अल्पसंख्यक समूह में सहानुभूति रखते थे देश में जाति व्यवस्था की बुराइयों पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का मानना था कि बेकसूर पर बेरहमी और अत्याचारों को रोकना ही दलितों का मूल समस्या है. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने जातीय व्यवस्था के विरुद्ध हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया. राष्ट्रीयता धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की पैरवी करते रहे अंध राष्ट्रवाद बहुसंख्यक बाद धार्मिक कट्टरता के खतरों से आगाह भी किया. मान्यvता और सामाजिक बराबरी राष्ट्र की बुनियाद है.

मानव के अस्तित्व पर खुलकर अपने विचार रखे उनका मानना था कि पैसा और यश कमाना ही मनुष्य का अंतिम उद्देश्य नहीं होना चाहिए. वह कहते थे कि जैसे ही हम अपने सोच के दायरे को बढ़ाते हैं वैसे ही अपने सपनों को प्राप्त करने की दिशा में भी आगे बढ़ जाते हैं. उनका मानना था कि हर व्यक्ति का जन्म किसी ना किसी खास उदेश्य से हुआ है. जो हम सब को एक दूसरे से विशेष बनाता है. जीवन लंबा नहीं महान होना चाहिए जिस तरह का विचार नहीं मर सकते उसी तरह आत्मा भी नश्वर है. उन्होंने कहा कि कोई भी इंसान अमर नहीं है, लेकिन हम अपने पीछे अपने चिंतन विचार और दर्शन छोड़ सकते हैं. ताकि हमारे विचार आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहे.

डॉक्टर अंबेडकर को भारतीय हिंदू समाज के तमाम अत्याचारी स्वरूपों के खिलाफ एक विद्रोह है के प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा :- पंडित जवाहरलाल नेहरू

संविधान की निर्माण प्रक्रिया

जब भारत देश अंग्रेजों से आजाद हुआ पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था. लेकिन नीति निर्माताओं के लिए बहुत भागदौड़ वाले दिन थे. संवैधानिक संविधान तैयार करना आसान काम नहीं था लिहाजा इनकी जिम्मेदारी एक ऐसे व्यक्ति को दी गई जो कानून. अर्थशास्त्री के साथ साथ uद्दावर नेता और सामाजिक सुधार थे. वह थे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर. 29 अगस्त 1947 को उन्हें संविधान समोदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया.

2 साल की अधिक मेहनत के बाद अधिकतर संविधान तैयार हुआ. 29 नवंबर 1949 को विधानसभा ने इसे मंजूरी दी अंबेडकर ने इस दौरान आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों को भारतीय लोकतंत्र के में लागू करने की कोशिश की. उन्होंने पश्चिमी लोकतंत्र ढांचे पर ज्यादा भरोसा जताया समानता और विविधता उनके राजनीतिक जरिए का मूल है. डॉ अंबेडकर ने जनता के देश की सारी जनता को नागरिक तौर पर बराबर अधिकार देने की पैरों कारी की और देश में पहली बार लोगों के भीतर यह अहसास जगह कि वह राज्य की नजर में एक दूसरे के बराबर है.

अंबेडकर ने भारत नक्सa पेश किया वह आधुनिक लोकतंत्र की बुनियाद पर खड़ा था. कानून मंत्री के तौर पर भी उन्होंने समानता की पैरों कारी की और समानता के प्रति नजरिए जातियों और धर्मों को लेकर नहीं था बल्कि वह लैंगिक समानता के भी बड़े पैरोकार रहे. हिंदू कोड बिल के जरिए उन्होंने महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देने और तलाक का अधिकार देने की वकालत की और आखिरकार कई मुद्दों पर असहमति होने देख उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. भीमराव अंबेडकर की शख्सियत इतनी विशाल थी कि उन्हें कई बड़े कामों की चर्चा नहीं हो पाती


  • भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में अहम भूमिका रही है
  • अंबेडकर बड़ी परियोजना परियोजना में भूमिका
  • आज भारत में उन्होंने दामोदर हीराकुंड और सोम नदी पर बनी योजनाओं में अहम भूमिका अदा की है


मजदूरों के काम करने के घंटे कम करने के लिए पूरा जोर लगाया साथ में मजदूर सम्मेलन के दौरान अंबेडकर की कोशिश के बाद ही मजदूरों के काम करने की अवधि 14 घंटों से 8 घंटे हुई.

अंबेडकर आखिर तक किसी भी तरह की इंसानी भेदभाव के खिलाफ लड़ते रहे और राजनीतिक समानता के अलावा सामाजिक समानता को हासिल करने के लिए वह लड़ते रहे.

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