गर्भवती महिलाओं की देखभाल एवं सावधानियां

प्रेगनेंसी के दौरान ऐसी कई बीमारियां हैं जो मां और बच्चे दोनों के लिए घातक सिद्ध हो सकती है तनाव भी इसी एक बीमारी है| गर्भावस्था की शुरुआत में कई कारणों के चलते कई महिलाएं तनाव में रहने लगती है जिससे बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है| गर्भवती महिलाओं में होने वाला हार्मोन और शरीरक बदलाव भी इनके तनाव का कारण बनता है|

एक महिला के लिए मां बनने का एहसास जीवन के सबसे सुखद एहसास में एक होता है। गर्भावस्था के 9 महीने में एक महिला को कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक बदलाव के साथ तकलीफों का भी सामना करना पड़ता है। इसी नाजुक स्थिति में महिलाओं को अपना खास ख्याल रखने की जरूरत होती है इसलिए उन्हें पहली तिमाही में हर महीने में जांच कराना चाहिए।

गर्भावस्था के शुरुआती 3 महीने अहम

  • सुबह के वक्त बुखार
  • जी मचल आना
  • कमजोरी लगना
  • कम भूख लगना
  • थकावट रहना
  • उल्टी

जैसी शिकायत कई इसी दौरान होती है लेकिन कई महिलाएं शुरूआती 3 महीने को काफी हल्के में लेती है| जबकि इसी दौरान गर्भ में शिशु का विकास होना जरूरी होता है जाहिर है इसी दौरान शरीर के बदलाव होने लगते हैं| खाने के स्वाद और त्वचा में भी बदलाव आने लगते हैं

  • मानसिक रूप से चिड़चिड़ापन स्वभाविक है|
  • लगातार भावनाओं का उतार-चढ़ाव बना रहता है
  • गर्भावस्था में शारीरिक परिवर्तन
  • चौथे महीने में पेट में संकुचन और दर्द


दूसरी तिमाही से त्वचा की रंगत में परिवर्तन त्वचा में कालापन आना शुरू हो जाता है| मां के फेफड़े और अधिक हवा लेना शुरू कर देते हैं ताकि पेट में पल रहे शिशु सही से ऑक्सीजन मिल सके यही कारण है| गर्भवती महिला तेजी से सांस लेने लगती है इसी तरह गर्भावस्था के तीसरे तिमाही में मां को अतिरिक्त भोजन की भी जरूरत पड़ती है| लेकिन इस दौरान एक्स-रे से बचना चाहिए क्योंकि यह किरणें बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है|

गर्भावस्था के दौरान तनाव

प्रेगनेंसी के दौरान ऐसी कई बीमारियां हैं जो मां और बच्चे दोनों के लिए घातक सिद्ध हो सकती है तनाव भी इसी एक बीमारी है| गर्भावस्था की शुरुआत में कई कारणों के चलते कई महिलाएं तनाव में रहने लगती है जिससे बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है| गर्भवती महिलाओं में होने वाला हार्मोन और शरीरक बदलाव भी इनके तनाव का कारण बनता है|

साथ ही जिस महिला को पहले से ही तनाव की बीमारी हो उसके लिए खतरे कई गुना अधिक बढ़ जाते हैं इसलिए गर्भावस्था के दौरान जितना हो सके खुश रहे|

गर्भावस्था में थायराइड

थायराइड का खतरा पहले 3 महीने ज्यादा होता है इस बीमारी कारण बच्चे के शरीर और मानसिक विकास पर भी असर पड़ता है| अगर महिला पहले से ही थायरॉइड होने की जानकारी है तो उन्हें गर्भाधारण करने से पहले आवश्यक जांच करवानी चाहिए ताकि होने वाले बच्चे और गर्भवती महिला भी सुरक्षित रह सके|

मधुमेह गर्भवती महिलाओं में

डायबिटीज (मधुमेह) एक अनुवांशिक बीमारी है इस इसलिए इसका खतरा मां से बच्चे को भी हो सकता है| इसलिए गर्भधारण से पहले जरूरी टेस्ट (जांच) चेकअप जरूर करवाना चाहिए|

  • हीमोग्लोबिन
  • कैलशियम
  • ब्लड शुगर
  • यूरिन
  • एचआईवी

यदि टेस्ट पॉजिटिव होता है तो डॉक्टर की देखरेख गर्भ धारण करें।

बड़ी उम्र में गर्भ धारण करना

जो महिला 30 से 35 की उम्र में गर्भधारण करती है उन्हें विशेष ध्यान रखने की जरूरत है| हाइपरटेंशन, डायबिटीज, उम्र बढ़ने के साथ-साथ बीमारियों का खतरा बढ़ जाते हैं जैसे ब्लड प्रेशर प्रेगनेंसी में सावधानी ज्यादा भीड़भाड़, प्रदूषण, रेडिएशन, शराब और सिगरेट से दूर रहे| शराब बच्चे के खून में प्रवेश कर के शारीरिक और मानसिक विकास में बाधाएं पैदा कर सकती है|

गर्भपात का खतरा

कोई भी महिला जब गर्भ धारण करती है तो शायद वह कल्पना भी नहीं कर सकती कि उसे गर्भपात जैसी समस्याओं से जूझना पड़ेगा| लेकिन कई बार लापरवाही या अनजाने में ही गर्भपात हो जाता है जो कई बार किन्हीं कारणों से गर्भावस्था क्षति होती है।



गर्भावस्था की शुरुआत में गर्भपात आम तौर पर तब होता है जब शिशु सही तरीके से विकसित नहीं हो रहा हो इसमें रक्त स्त्राव नियंत्रण बढ़ता जाता है। वैसे तो प्रेगनेंसी के दौरान  ब्लडिंग सामान्य बात है लेकिन पहली तिमाही में ज्यादा रक्त स्त्राव हो जाए तो गर्भपात होने की संभावना बढ़ जाती है। विशेषज्ञ के अनुसार पहले 3 महीने में गर्भपात होने का सबसे बड़ा कारण है। बच्चेदानी में खराबी 30 से 35% मामलों में  बच्चेदानी में समस्या के कारण गर्भपात बच्चेदानी में किसी रोग का संक्रमण के कारण गर्भ ठहर नहीं पाता है।
गर्भपात के लिए जो मुख्य रूप से जिम्मेदार है उनमें 


  • मधुमेह
  • क्रोनिक
  • नेफ्राइटिस गुर्दे में खराबी 
  • हाई ब्लड प्रेशर
  • बच्चेदानी में रसोली
  • एनीमिया
  • पोषण की कमी
  • जहरीली गैस
  • कीटनाशक से संपर्क
  • रेडिएशन 
  • शराब का सेवन 
  • सिगरेट पीना 
  • नशीली दवाओं का सेवन।

प्रेगनेंसी के दौरान कम पानी पीने वाली महिलाओं की डिलीवरी में समस्या हो सकती है। समय से पहले डिलीवरी, स्तनपान में दिक्कत, सिर में दर्द, मिचली हाथ पैर में सूजन चक्कर आना।

स्वस्थ मां और बच्चे के लिए पानी का महत्व

गर्भावस्था में पानी मां और बच्चे के सुरक्षित स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पानी जहां रक्त कोशिकाओं के विकास में मददगार होता है वही वही यह मां के दूध के लिए भी जरूरी है। गर्भावस्था के समय पर्याप्त मात्रा में पानी पीने पर बच्चे को डिहाइड्रेशन का खतरा नहीं होता है।

प्रेगनेंसी के दौरान कम पानी पीने वाली महिलाओं की डिलीवरी में समस्या हो सकती है। समय से पहले डिलीवरी, स्तनपान में दिक्कत, सिर में दर्द, मिचली हाथ पैर में सूजन चक्कर आना। इसलिए डॉक्टर की सलाह अनुसार पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए ताकि शिशु और मां दोनों स्वस्थ रह सकें। 

गर्भावस्था में संतुलित आहार

गर्भावस्था में आहार प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन से भरपूर चीजें ज्यादा खानी चाहिए| बच्चे के दिल, नसों और मांसपेशियों का विकास कैल्शियम पर निर्भर करता है। ज्यादातर भारतीय महिलाओं में प्रोटीन और कैल्शियम की कमी होती है| इसलिए फल, हरी पत्तेदार सब्जियां भी खूब खाएं, तला और मसालेदार ना खाएं इन से गैस एसिडिटी जलन हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान संतुलित आहार बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए तरह तरह का खाना खाएं और एक बार में ना खा पाए तो बार बार थोड़ा-थोड़ा करके खाएं।


गर्भावस्था में सावधानियां


  • गर्भावस्था में किसी भी समस्या से बचने के लिए जरूरी है 
  • ज्यादा वजन ना उठाएं
  • ज्यादा डांस ना करें
  • हिल ना पहने
  • लंबी यात्रा से बचे
  • घर के कुछ हल्के काम ही करें
  • सोने और जागने का समय ठीक रखें
  • शारीरिक स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखें हल्के व्यायाम (योग) भी करते रहे।

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